अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा लखनऊ का रिफा-ए-आम-क्लब

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रिफा-ए-आम-क्लब

भारत की आज़ादी में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करने वाले लखनऊ में कई ऐतिहासिक महत्व की इमारतें हैं। इन्हीं में से एक है रिफ़ा-ए-आम क्लब जो आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। कभी लखनऊ मे प्रगीतिशील चेतना की पहचान रिफा-ए-आम क्लब आज उपेक्षा का शिकार हो गया। क्लब धीरे-धीरे खंडहर मे तब्दील हो रहा है और जिम्मेदारों ने भी कभी इसके बदहाली की सुध नहीं ली आज क्लब में कई स्थानों पर गाड़ियां खड़ी होती हैं और क्लब के अंदर कूड़े कचरो का ढेर है।

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1936 मे प्रगतिशील संघ का पहला अधिवेशन रिफ़ा-ए-आम क्लब में ही हुआ था, जिसकी अध्यक्षता मुंशी प्रेमचंद ने की थी। इस अधिवेशन में मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि “साहित्यकार का लक्ष्य केवल महफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है, इस क्लब की ये स्तिथि इस बात की तस्दीक करती है की हम अपनी साहित्यिक विरासतों के प्रति कितने सजग है। बदलते समय में इस क्लब के संरक्षण के प्रति सरकारों नें भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। समय-समय पर लोगों ने इस क्लब के जीर्णोद्धार के लिए आवाज उठाई पर वह आवाज मुकम्मल कानों तक नहीं पहुंच पाई और जहाँ तक पहुंची उन लोगो नें भी अनसुना कर दिया। जिसकी वजह से साहित्यिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण इमारत आज जर्जर स्थिति में है।

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