संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूँक तत्कालीन कांग्रेस की सरकार के विरुद्ध बगावत का रुख अपनाने वाले लोकनायक शब्द को असलियत में चरितार्थ करने वाले व्यक्ति थे जेपी, जेपी यानि कि जयप्रकाश नारायण जिनके संपूर्ण क्रांति का जिक्र करते ही देश में आजादी की लड़ाई से लेकर 1977 तक तमाम आंदोलनों की लौ को जलाये रखने वाले एक ऐसे शख्स का नाम आता हैं जिन्होंने उस समय अपने विचार और आदर्शों से युवाओं के नेतृत्व की नई रूपरेखा तय की थी। इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष का मजबूत नेतृत्व करने और उन्हें उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था। 1902 मे बिहार के सिताबदियारा मे जेपी का जन्म हुआ था शुरू से ही जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनकी वाणी मे ओज झलकता था। स्कूल के समय से ही जयप्रकाश का रुझाव साहित्य की तरफ हुआ और वह किताबें पढ़ने मे रूचि रखते थे। पटना से अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए जेपी अमेरिका चले गए जहां उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ मार्क्स और लेनिन को पढ़ा।

कई बार जेल जा चुके थे आजादी के दौरान
जेपी के मन में एक कसक रहती थी देश को आजाद करने की इसका असर यह हुआ की 1929 में भारत लौटकर जयप्रकाश नारायण स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े। इसी दौरान उनकी मुलाकात गांधी और नेहरू से भी हुई और जेपी धीरे-धीरे अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का संचालन करने लगे। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और नासिक जेल ले जाया गया जहां जेपी की मुलाकात समाजवादी विचारधारा के कई नेताओं से हुई। देश की आजादी तक संघर्ष करते हुए जेपी को कई बार जेल भी जाना पड़ा लेकिन उनके इरादे और विचार इतनें मजबूत थे कि कभी डिगे नहीं। आजादी के बाद वो अक्सर कहा करते थे कि सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही तय होनी चाहिए।

जब जेपी ने किया सम्पूर्ण क्रांति का ऐलान
1954 में गया, बिहार में उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की और 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष मे राजनीति छोड़ने का फैसला किया। लेकिन 1960 के दशक के अंतिम भाग में वह राजनीति में फिर से सक्रिय हो गए। बाद के दिनों में भारतीय राजनीति में फिर से उनकी वापसी हुई और संपूर्ण क्रांति के नारे के साथ चारों तरफ उनकी चर्चा होने लगी। सम्पूर्ण क्रांति के ऐलान के साथ उन्होंने तत्कालीन सरकार के विरुद्ध एक जंग छेड़ दी उनके इस आंदोलन के साथ क्या युवा और क्या बुजुर्ग सभी एक-एक करके जुड़ते जा रहे थे। इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ उन्होंने जो विरोध की चिंगारी जलाई थी वह धीरे-धीरे अब ज्वाला का रूप ले चुकी थी। इसके बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी और जेपी तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल मे डाल दिया गया। उसी वक्त राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने कहा था ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।’

आजादी के बाद जब पहली बार बनी गैर कांग्रेसी सरकार
फिर 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रांति आदोलन’ के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। यह जेपी के ही करिश्माई नेतृत्व का असर था। वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता और नेतृत्व पीछे और जनता आगे थी। जयप्रकाश नारायण ने 8 अक्टूबर 1979 को पटना में अंतिम सांस ली। मरने के बाद जेपी को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। जब आंदोलनों का जिक्र होगा तब-तब जयप्रकाश नारायण के दृढ़ विचार और उच्च आदर्शों की चर्चा होती रहेगी।